अमीर मीनाई अपने समय के बेहद मशहूर और विद्वान शायर हुए हैं उनकी ग़ज़लें एक ओर उनकी विद्वता को सिद्ध करती हैं तो दूसरी ओर उनकी भावुकता को। उनकी ग़ज़लों में इतनी जबर्दस्त गेयात्मक्ता है जो आज भी गीतकार उनके शेरों को आधार बनाकर अपने गीतों के मुख़ड़े लिखते हैं। इस ग़ज़ल को इस आशा में यहाँ रखा जा रहा है कि गीतकारों को इससे कुछ सीखने को मिलेगा और गायकों को कुछ गाने के लिए।
ग़ज़ल अमीर मीनाई
आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है
हाय पूरा नही होता है, सवाल अच्छा है
नज़ाअ में मै हूं वह कहते है कि ख़ैरियत है
फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है
मांगू मै तुझी को कि कभी मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
फूल फ़ल हो कि न हो छाँव घनी हो जिसमें
हर मुसाफ़िर की नज़र में वह निहाल अच्छा है
देख ले बुलबुल-ओ-परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा नही हसीनों का वसाल अच्छा है
चीज़ मांगे की हो अच्छी भी तो किस मसरफ़ की
हो बुरा भी मगर अपना हो तो माल अच्छा है
जिसका अंजाम मुसीबत वह खुशी भी है बुरी
जिसका अंजाम खुशी हो वह मलाल अचछा है
शोखियाँ वस्ल मे करती है जो दिल को मायूस
शर्म देती है तसल्ली कि यह माल अच्छा है
Monday, January 11, 2010
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