Sunday, January 10, 2010

ग़ालिब को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी

बशीर बद्र साहिब का एक शेर है

कंप्यूटर से ग़ज़लें लिखेंगे बशीर बद्र
ग़ालिब को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी


इसी शे’र से प्रेरित होकर मैंने इस ब्लाग को शुरू किया है। इसका उद्देश्य कंप्यूटर से ग़ज़लें लिखने वाली नस्ल को उसी की सोच के अनुसार कविता से जोड़ना है।


इक्कीसवीं सदी आज के कवियों की कविता को समर्पित ब्लाग है। इसमें हमारा प्रयास रहेगा कि एक ओर युवा कवियों को प्रोत्साहित किया जाए वहीं दूसरी ओर स्थापित कवियों को भी पाठकों के रूबरू करवाया जाए। कविता पर आधारित ब्लागों के बीच इक्कीसवीं सदी का मूल मंत्र ऐसी कविता को बढ़ावा देना है जिसका व्यवसाइक प्रयोग भी संभव हो सके। इसलिए हम संगीत से जुड़ सकने योग्य कविता को प्रोत्साहित करेंगे-लय और छ्न्द पर आधारित कविता को प्राथमिकता देते रहेगे।

इसका एक लाभ संगीत से जुड़े लोगों को भी होगा कि उन्हें विभिन्न भावों पर आधारित गेय कविताएं एक ही स्थान पर मिल सकेंगी। कवि मित्रों से प्रार्थना है कि वे केवल स्वरचित (प्रकाशित/अप्रकाशित) कविताओं को ही प्रकाशनार्थ भेजें अन्यथा कानूनी कार्यवाही के चक्कर में पड़ सकते हैं। एक अन्य निवेदन है कि कवि अधिकाधिक गेय कविताएं ही हमें भेजे ताकि इस ब्लाग का मूल उद्देश्य पूरा हो सके। संगीतकार मित्रों से निवेदन है कि कविताओं का व्यवसायिक प्रयोग करने से पहले कवि की लिखित सहमति प्राप्त कर लें (कवि का संपर्क सूत्र हमसे प्राप्त किया जा सकेगा) । यह नैतिक रूप से भी ठीक है और व्यवसायिक रूप से भी। किसी भी प्रकार के अदालती चक्कर में पड़ने से दोनों पक्षों का क़ीमती समय नष्ट होगा जो किसी भी प्रकार श्रेयस्कर नहीं है।

आने वाले समय में ऐसे लेख कम से कम और कवियों की कविताएं अधिक प्रस्तुत करने की इच्छा के साथ

पूजा





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