Wednesday, January 13, 2010

aatish ke sher

चमन में रहने दे कौन आशियां नहीं मालूम
निहाल किसको करे बागबां नहीं मालूम
ख़्वाज़ा हैदर अली आतिश

प्रेषक
तेज पाल रंगा

Monday, January 11, 2010

आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है -अमीर मीनाई

अमीर मीनाई अपने समय के बेहद मशहूर और विद्वान शायर हुए हैं उनकी ग़ज़लें एक ओर उनकी विद्वता को सिद्ध करती हैं तो दूसरी ओर उनकी भावुकता को। उनकी ग़ज़लों में इतनी जबर्दस्त गेयात्मक्ता है जो आज भी गीतकार उनके शेरों को आधार बनाकर अपने गीतों के मुख़ड़े लिखते हैं। इस ग़ज़ल को इस आशा में यहाँ रखा जा रहा है कि गीतकारों को इससे कुछ सीखने को मिलेगा और गायकों को कुछ गाने के लिए।

ग़ज़ल अमीर मीनाई

आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है
हाय पूरा नही होता है, सवाल अच्छा है

नज़ाअ में मै हूं वह कहते है कि ख़ैरियत है
फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है

मांगू मै तुझी को कि कभी मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है

फूल फ़ल हो कि न हो छाँव घनी हो जिसमें
हर मुसाफ़िर की नज़र में वह निहाल अच्छा है

देख ले बुलबुल-ओ-परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा नही हसीनों का वसाल अच्छा है

चीज़ मांगे की हो अच्छी भी तो किस मसरफ़ की
हो बुरा भी मगर अपना हो तो माल अच्छा है

जिसका अंजाम मुसीबत वह खुशी भी है बुरी
जिसका अंजाम खुशी हो वह मलाल अचछा है

शोखियाँ वस्ल मे करती है जो दिल को मायूस
शर्म देती है तसल्ली कि यह माल अच्छा है

Sunday, January 10, 2010

रतन पंडोरवी : दीवाने की बात

रतन पंडोरवी उस्ताद शाइर थे और उनकी इस उम्दा ग़ज़ल से आग़ाज़ करते हुए मुझे आशा है कि इक्कीसवीं सदी के शायर बीसवीं सदी के इस दिग्गज़ शायर की शायरी से बहुत कुछ सीखेंगे । और गायक और संगीतकारों को इसमें कुछ बात नज़र आएगी।


ग़ज़ल -रतन पंडोरवी
अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात

अहले ग़ुलशन को कहां मालूम वीराने की बात



इस क़दर दिलकश कहां होती है फ़र्ज़ाने की बात

बात में करती है पैदा बात दीवाने की बात



बात जब तय हो चुकी फिर बात का मतलब ही क्या

बात में भिर बात करना, है मुकर जाने की बात



इस का ये मतलब क़यामत अब दुबारा आएगी

कहा गए है बातों बातों में वो फिर आने की बात



बात पहले ही न बन पाए तो वो बात और है

सख़्त हसरतनाक है बन कर बिगड़ जाने की बात



इसमें भी कुछ बात है वो बात तक करते नहीं

सुनके लोगों की ज़ुबानी मेरे मर जाने की बात



बात का ये हुस्न है दिल में उतर जाए रतन

क्यों सुनाता है मुझे दिल से उतर जाने की बात



ग़ालिब को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी

बशीर बद्र साहिब का एक शेर है

कंप्यूटर से ग़ज़लें लिखेंगे बशीर बद्र
ग़ालिब को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी


इसी शे’र से प्रेरित होकर मैंने इस ब्लाग को शुरू किया है। इसका उद्देश्य कंप्यूटर से ग़ज़लें लिखने वाली नस्ल को उसी की सोच के अनुसार कविता से जोड़ना है।


इक्कीसवीं सदी आज के कवियों की कविता को समर्पित ब्लाग है। इसमें हमारा प्रयास रहेगा कि एक ओर युवा कवियों को प्रोत्साहित किया जाए वहीं दूसरी ओर स्थापित कवियों को भी पाठकों के रूबरू करवाया जाए। कविता पर आधारित ब्लागों के बीच इक्कीसवीं सदी का मूल मंत्र ऐसी कविता को बढ़ावा देना है जिसका व्यवसाइक प्रयोग भी संभव हो सके। इसलिए हम संगीत से जुड़ सकने योग्य कविता को प्रोत्साहित करेंगे-लय और छ्न्द पर आधारित कविता को प्राथमिकता देते रहेगे।

इसका एक लाभ संगीत से जुड़े लोगों को भी होगा कि उन्हें विभिन्न भावों पर आधारित गेय कविताएं एक ही स्थान पर मिल सकेंगी। कवि मित्रों से प्रार्थना है कि वे केवल स्वरचित (प्रकाशित/अप्रकाशित) कविताओं को ही प्रकाशनार्थ भेजें अन्यथा कानूनी कार्यवाही के चक्कर में पड़ सकते हैं। एक अन्य निवेदन है कि कवि अधिकाधिक गेय कविताएं ही हमें भेजे ताकि इस ब्लाग का मूल उद्देश्य पूरा हो सके। संगीतकार मित्रों से निवेदन है कि कविताओं का व्यवसायिक प्रयोग करने से पहले कवि की लिखित सहमति प्राप्त कर लें (कवि का संपर्क सूत्र हमसे प्राप्त किया जा सकेगा) । यह नैतिक रूप से भी ठीक है और व्यवसायिक रूप से भी। किसी भी प्रकार के अदालती चक्कर में पड़ने से दोनों पक्षों का क़ीमती समय नष्ट होगा जो किसी भी प्रकार श्रेयस्कर नहीं है।

आने वाले समय में ऐसे लेख कम से कम और कवियों की कविताएं अधिक प्रस्तुत करने की इच्छा के साथ

पूजा