Sunday, January 10, 2010

रतन पंडोरवी : दीवाने की बात

रतन पंडोरवी उस्ताद शाइर थे और उनकी इस उम्दा ग़ज़ल से आग़ाज़ करते हुए मुझे आशा है कि इक्कीसवीं सदी के शायर बीसवीं सदी के इस दिग्गज़ शायर की शायरी से बहुत कुछ सीखेंगे । और गायक और संगीतकारों को इसमें कुछ बात नज़र आएगी।


ग़ज़ल -रतन पंडोरवी
अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात

अहले ग़ुलशन को कहां मालूम वीराने की बात



इस क़दर दिलकश कहां होती है फ़र्ज़ाने की बात

बात में करती है पैदा बात दीवाने की बात



बात जब तय हो चुकी फिर बात का मतलब ही क्या

बात में भिर बात करना, है मुकर जाने की बात



इस का ये मतलब क़यामत अब दुबारा आएगी

कहा गए है बातों बातों में वो फिर आने की बात



बात पहले ही न बन पाए तो वो बात और है

सख़्त हसरतनाक है बन कर बिगड़ जाने की बात



इसमें भी कुछ बात है वो बात तक करते नहीं

सुनके लोगों की ज़ुबानी मेरे मर जाने की बात



बात का ये हुस्न है दिल में उतर जाए रतन

क्यों सुनाता है मुझे दिल से उतर जाने की बात



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